सूनु: सच्चरित: सती प्रियतमा स्वामी प्रसादोन्मुख: स्निग्धं मित्रमवञ्चक: परिजनो निक्लेशलेशं मन:। आकारो रुचिर: स्थिरश्च विभवो विद्यावदातं मुखं तुष्टे विष्टपहारिणीष्टदहरौ संप्राप्यते देहिना ।।
- सदाचारी पुत्र, पतिव्रता स्त्री, प्रसन्न रहने वाला स्वामी, प्रेमी मित्र, धूर्तता रहित परिवार, क्लेश-विहीन मन, सुन्दर तथा स्थिर ऐश्वर्य और विद्या से पवित्र मुख – ये सब मनुष्य को तभी मिलते हैं जब भगवान् नारायण सन्तुष्ट होते हैं ।।