क्वचिद्भूमौ शय्या क्वचिदपि च पर्यङ्कशयनं क्वचिच्छाकाहारी क्वचिदपि च शाल्योदनरुचि:। क्वचित्कन्थाधारी क्वचिदपि च दिव्याम्बरधरो- मनस्वी कार्यार्थी न गणयति दु:खं न च सुखम्।।
- क्रिया सिद्धि चाहने वाले मनस्वी पुरुष सुख-दु:ख में सम रहते हैं। विभिन्न परिस्थितियाँ उन पर प्रभाव नहीं डालतीं। भूमि शयन अथवा पलंग पर, शाक के आहार में अथवा उत्कृष्ट व्यंजन में, जीर्ण वस्त्र में अथवा दिव्य वस्त्र में वे एक समान व्यवहार करते हैं।।