बलि प्रथा – एक घोर पाप

बलि प्रथा – एक घोर पाप

bali pratha ek ghor paap

 

जय माता की !

सनातन हिंदू धर्मं में कही भी इस बात की चर्चा नही की गई है किसी देवी-देवता को किसी पशु-पक्षी या अन्य जीव की बली देनी चाहिए या बली देने से मनोकामना पूर्ण होती है या बलि देना अनिवार्य है, फिर भी माँ दुर्गा या उनके अन्य रूपों को पशु-पक्षीयों की बली दी जा रही, वो माँ दुर्गा जिनको जगत-जननी कहा जाता है, मनुष्य, पशु-पक्षी आदी सभी जीव जिनके संतान है, जो ब्रह्मांड के सभी जीवो की परम ममतामई माँ है उनके ही सामने उनके संतानों की अंधविश्वासियों और धर्मान्धियों द्वारा गला रेत कर निर्दयता पूर्वक हत्या की जाती है, क्या अपने संतान की ये हालत देखकर माता को दुःख नही होता होगा ? क्या उनका कलेजा नही फटता होगा ? दुनिया की कोई भी माँ अपने संतान के आँख से आंशु का एक बूंद भी नही देख सकती फिर अपने ही संतानों की अपने आँखों के सामने हत्या होते देख कर वो जगत जननी माँ कितना दुखी होती होंगी ?

अपने व्यक्तिगत महत्वकंक्षाओं के लिए धर्मांध बनकर निर्दोष-बेजुबान पशु-पक्षीओं का बलि देना किसी भी दृष्टिकोण के उचित नहीं है | माता से कुछ मांगना ही है तो सच्चे मन से मांगे जैसे अपने माँ से आप मांगते है मातारानी अवश्य ही आपकी इक्षा पूरी करेंगी, पशु बलि देना जरुरी नहीं है अगर माँ को कुछ भेंट देना ही चाहते हैं तो उन्हें सच्ची श्रद्धा-भक्ति और सम्मान दीजिये, ममतामई माँ आपकी सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण करेंगी | यदि इसके अतिरक्त कुछ और भेंट करना चाहते है तो फल, पुष्प, नारियल, चुनरी आदि भेंट करें मातारानी अवश्य प्रसन्न होंगी एवं आपकी मनोकामनाएं पूर्ण करेंगी |

जरा सोचिये क्या महान संतों जैसे तुलसी दास जी, स्वामी विवेकानंद जी, रहशु भगत जी, ध्यानु भगत जी आदि ने बलि दी थी क्या ?? बिल्कुल नहीं दी थी, फिर भी उन्होंने अपने आराध्य देव-देवी को अपनी भक्ति से प्रसन्न करके उनके साक्षात दर्शन किये |

हमारे वेदों-ग्रंथों में भी बलि निषेध है-

मा नो गोषु मा नो अश्वेसु रीरिष:।- ऋग्वेद 1/114/8
अर्थात- हमारी गायों और घोड़ों को मत मार

इममूर्णायुं वरुणस्य नाभिं त्वचं पशूनां द्विपदां चतुष्पदाम्।
त्वष्टु: प्रजानां प्रथमं जानिन्नमग्ने मा हिश्सी परमे व्योम।। – यजु. 13/50

अर्थात-  उन जैसे बालों वाले बकरी, ऊंट आदि चौपायों और पक्षियों आदि दो पगों वालों को मत मार

अतः आपसब से प्रार्थना है की इस कुप्रथा को समाप्त कराने में सहयोग करे, यदि कोई प्रथा बहुत लम्बे समय से चली आ रही हो तो यह जरुरी नहीं की उसे सुधारने के बजाय उसे हमेसा के लिए स्वीकार कर लिया जाये | जिस प्रकार हमारे देश से अनेक कुप्रथाएं जैसे की सती-प्रथा, बाल विवाह प्रथा आदि समाप्त की गयी है वैसे ही बलि प्रथा को भी समाप्त करना चाहिए |

ये बली देने का काम देश के कई अन्य मंदिरों के साथ-साथ थावेवाली माता के मन्दिर में भी होती है | आईये इस शुभ कार्य की शुरुआत माता थावेवाली के मन्दिर से करते है, लोगो को समझाते-बुझाते है की बली देना बंद करे और माता से क्षमा मांगे, करुनामई माँ उन्हें अवश्य क्षमा कर देंगी, आखीर कही–न-कही से शुरुवात करनी ही होगी तभी देश के बाकी हिस्सों में भी इसका अच्छा असर होगा और यह कुप्रथा समाप्त करने में मदद मिलेगी|

मित्रों आइये संकल्प ले की माता थावेवाली के मन्दिर में होनेवाले बली को अब और नही होने देंगे, बली देने वाले नासमझ लोगो को समझा-बुझाकर उन्हें सही रास्ते पर लायेंगे और जगत जननी माँ जगदम्बा के हिर्दय को अब और कष्ट नही पहुँचने देंगे |

आईये हम सब मिलकर बली देने वाले अपने मित्रो, परिजनों, पड़ोसियों एवं सगे-सम्बन्धियों आदि को जागरूक बनाये और ये घोर पाप और जघन्य अपराध करने से उन्हें रोके !

जय माता की !

माता थावेवाली की कृपा एवं आशीर्वाद से

अजित तिवारी
http://www.jaimaathawewali.com

(इस कुप्रथा को पूर्ण रूप से और यथाशीघ्र कैसे समाप्त किया जा सकता है आप अपना सुझाव अवस्य दिजिये| यदि आप बली प्रथा का समर्थन करते है तो इसके पक्ष में उचीत प्रमाण प्रस्तुत करें )

Bookmark the permalink.

Comments are closed.