नीतिश्लोक
नीतिश्लोक जाड्यं धियो हरति सिञ्चति वाचि सत्यं मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति। चेत: प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं सत्संगति: कथय किं न करोति पुंसाम्।। सरलार्थ- सत्संगति बुद्धि की जड़ता हरती, सत्य कहलवाती, मान बढ़ाती है और पाप को दूर करती है। चित्त को प्रसन्न करती और दिशाओं में यश फैलाती है। इस प्रकार Continue reading… Continue reading